Indian Author Ranjan Kumar Singh
Indian Author Ranjan Kumar Singh

यूक्रेन तुम आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं। और यूक्रेन आगे बढ़ गया। पर जब सामने से उसपर संकट आ धमका और उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसने अपने साथ किसी को भी नहीं खड़ा पाया। हम सब भी कभी न कभी इन स्थितियों से गुजरे हैं। जिनके भरोसे हम कोई जोखिम उठाते हैं या जिन के दम पर हम दूसरे से दो-दो हाथ करने को तैयार हो जाते हैं, जरूरत पड़ने पर वे हमारे साथ खड़े नहीं नजर आते। और तब हमारा अपना सामर्थ्य ही हमारे काम आता है। यूक्रेन के साथ भी आज यही हुआ है।

आज जो रूस और यूक्रेन एक-दूसरे से गूँथे हुए हैं, वे दोनों ही 1991 तक सोवियत संघ के हिस्से थे। बल्कि 1922 में सोवियत संघ को बनाने में जितना हाथ सोवियत रूस का रहा था, उतना ही सोवियत यूक्रेन का भी रहा था। हालांकि सच यही है कि रूस और यूरोप की कशम्कस में वह सदियों से तबाह होता रहा है। भौगोलिक तौर पर देखें तो यूक्रेन का बड़ा भूभाग यूरोप के बीच फंसा हुआ है, जहां उसकी सीमाएं पोलैण्ड, हंगरी, स्लोवाकिया, रोमानिया तथा मॉलडोवा से लगी हुई हैं। उसकी दूसरी तरफ रूस और बेलारूस हैं।

देखें तो यूक्रेन, रूस के बाद सबसे बड़ा यूरोपीय देश है। पर यूरोप में होकर भी जहां रूस उससे बाहर है, वहीं यूक्रेन रूस और यूरोप के अन्य देशों के साथ समान दूरी या यूँ कहें कि समान निकटता बनाए रखना चाहता है। सोवियत संघ से अलग होने के बाद एक तरफ तो उसने रूस के साथ अपने सैन्य संबंध बनाए रखे, तो वहीं 1994 में नाटो के साथ भी दोस्ती कायम की। नाटो यानी नार्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन। यह नाटो के साथ उसकी नजदीकियां ही हैं जो रूस को फूटी आँख भी नहीं सुहाती।

यूक्रेन की आम जनता यूरोपीय संघ तथा नाटो से निकट का संबंध चाहती है। 2013 में जब रूस के प्रभाव में आकर यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने यूक्रेन तथा यूरोपीय संघ के बीच की संधि भंग कर दी तो जनता सड़कों पर आ खड़ी हुई और उन्होंने यानुकोविच को अपदस्थ कर के ही दम लिया। राष्ट्रपति को रूस में भागकर शरण लेनी पड़ी। रूस ने अपने भक्त के साथ किए इस बर्ताव का बदला यूक्रेन से चुकाते हुए क्रीमिया को उससे अलग कर दिया। हालांकि इससे यूक्रेन के मिजाज पर कोई फर्क नहीं पड़ा और वह अपने राष्ट्रपति व्लादिमीर ज़ेलेंस्की के नेतृत्व में यूरोपीय संघ तथा नाटों से निकटस्थ बनाए रखने में जुटा रहा।

नाटो मूल रूप से सैन्य संगठन है, जिसमें 28 यूरोपीय देश शामिल हैं। इनके अलावा अमेरिका तथा कनाडा भी इसके सदस्य हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसकी स्थापना हुई थी और इसका मकसद था रूस पर लगाम कसना क्योंकि विश्व युद्ध के बाद वह अमेरिका के साथ-साथ दुनिया की बड़ी शक्ति बन चुका था और अमेरिका जहां यूरोप से दूर था, वहीं रूस यूरोप के साथ ही एशिया के बीच में भी था। अतः उसकी ताकत को समेटने के लिए अमेरिका को शेष यूरोपीय देशों को अपने साथ मिलाना जरूरी था। शुरु-शुरु में इस संगठन में जहां 12 देश ही शामिल थे, आज वहीं इसमें कुल 30 देश हैं। तीन अन्य देश बोस्निया-हर्जगोविना, जार्जिया और यूक्रेन भी इसमें शामिल होना चाहते हैं।

जाहिर है कि रूस को यूक्रेन का नाटो में शामिल होना बर्दाश्त नहीं है। यह तो कोई भी नहीं चाहेगा कि दुश्मन उसके दरवाजे पर घात लगा कर बैठ जाए। रूस ने नाटो से साफ शब्दों में कह रखा है वह यूक्रेन को अपने से अलग रखे और यह वायदा करे कि भविष्य में भी वह इसपर विचार नहीं करेगा। नाटो न केवल ऐसा करने से बचता रहा है बल्कि वह यूक्रेन को अपने साथ मिलाने का आश्वासन भी देता रहा है। उसके इसी आश्वासन के दम पर यूक्रेन ने हौसला दिखाया था, पर अब वह खुद को रूस के खिलाफ लड़ाई में अकेला पा रहा है। अमेरिका से लेकर यूरोप के देश उसके पक्ष में बयान तो दे रहै हैं, पर सैन्य मदद नहीं। उन्होंने रूस के खिलाफ बंदिशें लगाने का ऐलान तो किया है, पर उसका कोई असर रूस पर नहीं दिख रहा।

रूस के सैन्य हमले से निबटने के लिए राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की विश्व भर के तथाकथित कद्दवर नेताओं से सैन्य मदद मांग रहे हैं पर किसी ने उनकी बातों पर कान नहीं दिया है। यहां तक कि नाटो भी फिलहाल यही देख रहा है कि ऊंट किस करवट बैठता है। यूक्रेन की पीड़ा ज़ेलेंस्की के इस बयान में महसूस की जा सकती है, हम अकेले युद्ध लड़ रहे हैं, जबकि दुनिया की बड़ी ताकतें बाहर से तमाशा देख रही हैं।

Similar Posts