छठ पर विशेषः देव सूर्य मंदिर
गया तथा वाराणसी के बीच औरंगाबाद में शेरशाह सूरी मार्ग से छह किलोमीटर दक्षिण देव स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर कोणार्क से भी दो सौ साल अधिक प्राचीन है। इसके महात्म का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां साल में दो बार छठ के अवसर पर लाखों लोग जुटते हैं। वैसे तो […]
बचपन का काबुलीवाला रह-रह कर याद हो आता है
रंजन कुमार सिंह बचपन में जब कभी काबुलीबाला आता था हमारी गली में तो मैं डर कर छिप रहता था घर के भीतर। किसी ने हमें बता दिया था कि ये जो पोटली लेकर घूमते हैं अपनी लंबी बाहों के बीच उसी में बाँध कर ले जाते हैं छोटे बच्चों को। दूर से ही हमें […]
Sun Temples and the Growth of Agrarian Society
Transcript of my paper entitled “Sun Temples and the Growth of Agrarian Society” presented at the International Seminar on Archaeology and Language held at Deccan College, Pune. While there are innumerable events – from the advent of Harappan culture to the first non-Congress government at the center with an absolute majority of its own – […]
The festival of Gangaur
The Hindu month of Chaitra brings with it several festivities in various parts of India. While in the north people observe Navratras, and Chhath in the east, in Rajasthan they celebrate Gangaur to mark the beginning of a new calendar. True to the spirit of this princely state, the festival of Gangaur is celebrated here […]
नए साल में नया करो
मत बदलो कैलेण्डरयादें रहने दो ताज़ाबीते ज़ख्मों की कुछ करना ही है तोडालो बीजसीचों उसे अपने विश्वास सेकरो हरा उसे अपनी आस्था सेदेखो उसे सिक्त होकर बढ़तेइस नमी और ऊष्मा से हमारा चरित्र कैलेण्डर नहींजिसे हम रातों-रात बदल लेंयह तो एक बीज हैहरियाली की संभावनाओं को समेटेउसी में समाया है नयाइस नए साल का! मत […]
Ishopnishad (ईशोपनिषद)
ओम ईश वास्यम इदं सर्वं यत किम च जगत्यां जगततेन त्यक्तेन भुन्जिथा मा गृधः कस्य स्विद धनं |१| इस गतिशील जगत में जो कुछ भी सचल है, वह ईश्वर के वस्त्रों से ढका हुआ है. यानी उन सबपर ईश्वर का ही आधिपत्य है. जिसे हम अपना मान कर बैठे हैं, वह भी दरअसल उसी का […]