एक्सट्रा 2-एबी आखिर आया कहां से!
अब तक छह दौर के मतदान हो चुके हैं और केवल एक दौर का मतदान ही शेष है। चुनाव आयोग के अनुसार पहले दौर में कुल 66.14 फीसदी मतदान हुए। दूसरे दौर में मतदान का प्रतिशत 66.71 रहा। तीसरे दौर की बात करें तो वह 65.68 था जो कि चौथे दौर में 69.16 हो गया। इसी तरह पाँचवे और छठे चरण में मत प्रतिशत क्रमशः 62.20 और 61.2 रहा। मैं यहां जो आंकड़े दे रहा हूं वे चुनाव आयोग की तरफ से दिए गए संशोधित आंकड़े हैं। मतदान के दिन जारी आंकड़ों में तथा कुछ दिन रुक कर जारी किए गए इन संशोधित आंकड़ों में हम आसमान – जमीन का फर्क न भी मानें तो उनमें बड़ा अंतर है। 19 अप्रैल को तो चुनाव आयोग ने हमें बताया कि पहले चरण में मात्र 60 फीसदी मतदान हुए लेकिन फिर 30 तारीख को उसमें संशोधन करते हुए उसे 66.14 बता दिया। ठीक ऐसे ही दूसरे दिन के मतदान के बाद हमें बताया गया कि सात बजे शाम तक 60.96 फीसदी मतदान ही हुए थे जबकि चार दिन बाद ही वह बढ़कर 66.71 फीसदी हो गया। ऐसे में इसे लेकर तो हंगामा बरपना ही था। गौर करने की बाद है कि इस हंगामे के बाद चुनाव आयोग आंकड़े जारी करने को लेकर सकर्तक हुआ और अगले तीन चरणों के संशोधित आंकड़ों में वैसी बढ़ोत्तरी नहीं देखी गई जैसा कि पहले दो चरणों के आंकड़ों में। छठे चरण के संशोधित आंकड़े अभी नहीं जारी किए गए हैं।
मेरा ख्याल है कि एक से दो फीसदी के अंतर को स्वाभाविक माना जाना चाहिए और इसे लेकर कोई आशंका भी नहीं होनी चाहिए। पर सवाल तो पहले दो चरणों के आंकड़ों को लेकर है जहां अंतर पाँच से छह फीसदी का है। इसे उसे स्वाभाविक मान लेना थोड़ा मुश्किल है। सवाल है कि ये अक्सट्रा 2 एबी आया कहां से। सच कहें तो मेरे पास तो क्या, शायद किसी के पास इसका जवाब नहीं है। ऐसे में यही मान लेना पड़ेगा कि पहले दो चरणों के आंकड़े जारी करने में आयोग ने कुछ हड़बड़ी की और इसीलिए उसमें उसे ज्यादा संशोधन करने पड़े। हंगामा होने पर उसने अपनी कार्यशैली में बदलाव किया। आंकड़ें मतदान के खत्म होते, न होते सात बजे जारी करने की बजाय उसने रात 11 बजे तक रुककर जारी करना शुरु किया। इससे आंकड़ों में कुछ ठहराव आया और फिर उसमें बड़े संशोधन की जरूरत नहीं हुई। पर यह सवाल तो अनुत्तरित ही रहा कि पहले दो दौर के मतदान में शुरुआती आंकड़ों और संशोधित आंकड़ों में इतना बड़ा अंतर आया कैसे? जब सब की सब पोलिंग पार्टियों को उसी दिन का उसी दिन आंकड़े भेजने का स्पष्ट निर्देश है तो क्या ऐसी गुंजाइश रह सकती है कि शुरुआती आंकड़ों में कुछ आंकड़ें छूटे रह जाएं? यह तो माना जा सकता है कि कुल योग में कुछ ऊंच-नीच हो गया हो पर भारी आंकड़े गिनने से रह गए हों तभी तो अंतर 19-20 का न होकर 20-25 का हो सकता है।
तो क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि ये एक्सट्रा 2 एबी आया कहां से? वाकई इसका जवाब मेरे पास नहीं। हां, इसपर एक कहानी जरूर याद हो आई है। साल था 1984 का। मेरे पिता बिहार के औरंगाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे। उनके सामने थे प्रांत के सबसे बड़े राजपूत नेता श्री सत्येन्द्र नारायण सिन्हा। मार्के की बात यह कि सत्येन्द्र बाबू जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में जा पहुंच थे और मेरे पिता कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी में। केन्द्र में तब कांग्रेस की ही सरकार थी और श्रीमती इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री थीं। जीत अंततः सत्येन्द्र बाबू की ही हुई पर किला दरक गया। चुनाव आयोग ने बता रखा था कि वहां लगभग पचास फीसदी मत डाले गए हैं। पर जब गिनती हुई तो निकले लगभग 59 फीसदी मत। इस नौ फीसदी की बढ़त के बारे में बड़ा ही दिलचस्प तथ्य सामने आया। वह जमाना ईवीएम का न था। बैलेट पेपर पर ठप्पा मारकर वोटिंग होती थी। सभी मतदान केन्द्र चिन्हित थे और उनपर सभी दलों के पोलिंग एजेन्ट भी तैनात थे। सबने अपने-अपने मतदान केन्द्र की पर्चियां मिलाई तो उनमें और गिनती की टेबुल पर रखी मतपेटियों की संख्या में कोई खास अंतर नहीं मिला। फिर यह एक्सट्रा 2 एबी आया कहां से?
तब पहली बार हमें बताया गया कि दूर-दराज के कस्बों में मतदान कराने के लिए चलंत बूथ बनाए गए थे। चलंत बूथ यानी कि मोबाइल पोलिंग बूथ। इन चलंत बूथों का न तो कोई अता-पता था और ना ही वहां किसी दल के पोलिंग एजेंट थे। बस गिनती वाले दिन उनके डब्बों को लाकर रख दिया गया गिनती के लिए और हमारी लाख आपत्तियों के उनकी गिनती हुई और उनके आधार पर चुनाव के नतीजे भी घोषित कर दिए गए। अब आप पूछेंगे कि मैं आपको क्यों यह कहानी सुना रहा हूं? यहां से तब यह एक्सट्रा 2 एबी आया करता था, वहीं से अब भी यह एक्सट्रा 2 एबी आ रहा है। पहले जहां चलंत बूथ थे जिनका कोई अता-पता नहीं था, वहीं अब 80 साल के बुजुर्गों और दिव्यांगों के लिए उनके घरों में वोटिंग की सुविधा उपलब्ध है जिनके बारे में चुनावी आंकड़े मौन हैं। चुनाव आयोग ने शुरु में जो आंकड़े जारी किए क्या उसमें बुजुर्गों एवं दिव्यांगों के वोट शुमार थे, यह पता नहीं। संशोधित आंकड़े जारी करते हुए क्या इन आंकड़ों को शामिल किया गया, यह भी स्पष्ट नहीं है। हम फॉर्म 7सी की ही बात करते रहे पर 1.7 करोड़ से अधिक की संख्या के इन मतों की कोई बात नहीं हुई। ध्यान देने की बात है कि बढ़े हुए मत प्रतिशत में बढ़े हुए मतों की गिनती लगभग उतनी ही है जितना कि दिव्यांग एवं बुजुर्ग मतदाताओं की संख्या। तो क्या यह बढ़ी हुई संख्या का बड़ा भाग इन्ही वोटों का है? अगर है तो नहीं मालूम उनके सत्यापन का क्या तरीका अपनाया गया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम तो ईवीएम में गड़बड़ी का बात करते रहे और दिव्यांग एवं बुजुर्ग के नाम पर वोटों में खेला हो गया।
यह एक्सट्रा 2 एबी अगर यहीं से आया है तो इस बात को साफ किया जाना चाहिए। यह न हो कि जैसे पहले चलंत बूथ का कोई अता-पता नहीं होता था पर जरूरत पड़ने पर उनके नाम की मतपेटियां काउंटिंग के लिए पहुंच जाती थीं, वैसे ही अब दिव्यांग एवं बुजुर्ग के वोटों के नाम पर कोई फर्जीवाड़ा चलाया जा रहा है। क्या छठे चरण के बाद देश को, हम मतदाताओं को और इस चुनाव में शामिल दलों को यह जानने का हक नहीं कि कितने वोट दिव्यांगों एवं बुजुर्गों के घरों में जाकर लिए गए और उनके सत्यापन का आधार क्या है। खास तौर पर तब जब वहां मतदान केन्द्र की तरह सभी दलों के एजेंट नहीं होते और मुझे तो यह भी नहीं पता कि यह मतदान सभी उम्मीदवारों की जानकारी में होता है या नहीं।