ऐसा लगता है मानो नितीश सरकार पटना की धरा पर स्वर्ग को उतार कर ही रहेगी. सब्ज़ बाग दिखाने की कला कोई नितीश से सीखे. अब वह पटना में गंगा के किनारे पटना वर्ल्ड सिटी बनाने पर विचार कर रहे हैं.
इसके लिए उन्हें प्रस्ताव भेजा है देश के जाने-माने आर्किटेक्ट हफीज़ कांट्रेक्टर ने. इस वर्ल्ड सिटी को देखने के बाद आप दुबई को भूल जायेंगे. 1700 एकड़ में फैले इस शहर में रिहायशी इलाके के साथ-साथ वाणिज्यिक इलाके भी होंगे, और होगा 600 एकड़ में बना पार्क, जो आपको न्यूयार्क सिटी पार्क की याद दिलाता रहेगा. मनोरजन के साधनों की भी यहाँ भरमार होगी. सात सितारा होटल, शौपिंग मॉल, स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल, हेल्थ क्लब, मेडिटेशन सेन्टर, आर्ट गैलेरी, कन्वेंशन सेन्टर, स्पोर्ट्स सेन्टर, जो चाहो वही मिलेगा इस नए शहर में. और यह सब बिहार की वह सरकार देगी, जो पिछले सात साल से पटना को एक नया और आधुनिक हवाई अड्डा देने पर विचार ही करती रही है!
मुझे याद है, आज से सात साल पहले मेरा छोटा भाई राजेश भारत सरकार के संयुक्त सचिव के तौर पर यहाँ आया था और नई सरकार के रंग-ढंग को देख कर ख़ासा प्रभावित हुआ था. मसला था पटना के लिए नया और सुरक्षित हवाई अड्डा. यह तो अब हर कोई जानता है कि पटना का वर्तमान हवाई अड्डा किसी भी हाल में सुरक्षित नहीं. दिल्ली लौटकर उसने जो बयान किया उससे ऐसा लगा कि हम अब तक लालू और उसकी निकम्मी सरकार को फिजूल ही झेलते रहे थे. दोनों पक्षों के बीच बैठक हुई. बैठक की पूरी कार्यवाही रिकॉर्ड की जाती रही. बैठक के बाद जब तक वे चाय पीते, बैठक का कार्यवृत टाइप होकर आ गया. तय हुआ कि पटना के बेऊर में जमीन लेकर वहां नया हवाई अड्डा बनाया जाये. हाथों-हाथ दोनों पक्षों के बीच सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर भी हो गए. ऐसा तो लालू युग में खैर सोचा भी नहीं जा सकता था.
पता नहीं क्यों, मुझे तब भी सरकार की गंभीरता पर संदेह था. मैंने अपना संदेह राजेश से कहा तो उसे यही लगा कि सरकार से राजनैतिक दूरी और उनका कृपापात्र न होने के कारण ही मै ऐसा कह रहा हूँ. आज राजेश को भारत सरकार की नौकरी छोड़े अरसा हो गया, पर पटना का हवाई अड्डा हवाई किला ही बना हुआ है.
इसी तरह का दूसरा मामला मेरे मित्र राजीव प्रताप रूडी के साथ हुआ. रूडी ने उत्तर प्रदेश के उद्योगपति जवाहर जायसवाल के साथ मिल कर अपने क्षेत्र के मरौरा चीनी मिल को पुनर्जीवित करने की योजना क्या बनाई, उनपर तो आफत ही आ गई. बिहार की औद्योगिक प्रगति के लिए सरकार की गंभीरता को देखते हुए, दोनों ने पुरानी चीनी मिल को फिर से शुरू करने का निश्चय किया. किसानों ने अपने खेतों में गन्ने भी लगा दिए. लेकिन वही ढाक के तीन पात. किसानों को अपने खेतों के गन्ने जला देने पड़े, पर चीनी मिल को न तो शुरू होना था, ना ही वह शुरू हुआ. अपनी तमाम गंभीरता के बावजूद सरकार की बेरुखी और प्रशासनिक अड़चने बीच में आ ही गयीं.
मेरे एक अन्य मित्र बालाचंद्रन नायर के साथ हुआ वाकया सरकार की प्रगतिशीलता की पोल खोलने के लिए काफी है. उनके युनिवर्सल अम्पायर ग्रुप ने नितीश सरकार को बेतिया में मेडिकल कॉलेज खोलने का प्रस्ताव दिया. सरकार के साथ बातचीत से नायर बेहद प्रभावित हुए. उन्हें लगा कि जब मुख्य मंत्री से ही उनकी बात हो चुकी तो मेडिकल कॉलेज तो बनना ही है. सालों बीत गए पर उन्हें बिहार सरकार की तरफ से कोई पत्र तक नहीं मिला. एक दिन मैं यूं ही बिहार सरकार के वेब साईट को देख रहा था तो मैंने देखा कि उनके प्रस्ताव को हरी झंडी मिल चुकी है. मैंने नायर को फोन किया और बधाई दी. कुछ उलाहना भी दी कि उन्होंने यह बात मुझसे छिपाई रखी. नायर साहब हैरान, उन्होंने कहा- भाई मुझे तो इस बारे में कोई खबर ही नहीं! जाहिर तौर पर सरकार ने वेब साईट पर अपनी उपलब्धियां गिनने के लिए यह डाल दिया था, जबकि बात जहाँ की तहाँ थी.
सावन के अंधे को हरियाली ही दिखती है. लालू से त्रस्त बिहार को नितीश में आशा दिखाई दी थी. अब जब वे छले महसूस करने लगे हैं तो उसे मानने को तैयार नहीं हैं. अगर मैं कहूँ कि बिहार में कुछ नहीं बदला है तो शायद मुझपर यकीन ना हो. पर सच यही है और सच बहुत दिनों तक छिपा रहेगा नहीं. किसी भी प्रस्ताव को सरकार जिस तरह से उलझाती रही है, वह बेमिसाल है. पटना से उठाकर हवाई अड्डे को पहले बेउर, फिर बिहटा और अब नालंदा ले जाने की बात चलायी जाती रही है, पर परिणाम सिफर. चीनी मीलों को पुनर्जीवित करने की बात की जाती रही है, पर परिणाम सिफर. औद्योगिक विकास की बड़ी-बड़ी बातें की जाती रही है, पर परिणाम सिफर. इन दिनों किसी केन्द्रीय विश्विद्यालय का प्रस्ताव सुर्ख़ियों में है. वह बोध गया में हो या चम्पारण में, इसपर विचार चल रहा है. इस बीच जमीन जय्द्दाद की खरीद-फरोख्त दोनो जगह बढ़ गई है. कुछ ऐसा ही बिहटा और नालंदा में हवाई अड्डे के प्रस्ताव पर भी हुआ. मुझे तो लगता है कि सिर्फ और सिर्फ जमीन-जायदाद के दाम गिराने-चढ़ाने के लिए ऐसे विवाद खड़े किये जाते है. इनसे आमदनी कौन उठा रहा है, यह जाँच का विषय को सकता है.
Dhyanakarshan ke liye dhanyavad. Aisa abhas hota hai ki Raja ka aadesh palak yadi (Raja)sarkar ki chhavi dhumil karna chahe to kar sakata hai. Praja ka karya nahin hone per Raja badnam hota hai. sabhi praja raja tak nahin pahuch sakati. Aadesh palak (administration) ke galat nirnay se praja dukhi hoti hai. Raja badnam hota hai.