मेरे लिखते-लिखते ही बिहार के औरंगाबाद जिले की छहों सीटों पर मतदान शुरू हो जाएगा. वैसे औरंगाबाद के अलावा जहानाबाद, गया, सासाराम. भभुआ और अरवल जिलों में भी आज यानी १६ अक्टूबर को ही मत डाले जा रहे है. मैं खुद थोड़ी देर में अपने गाँव भवानीपुर स्थित मतदान केन्द्र पर वोट डालने जाऊँगा.

औरंगाबाद जिले की सभी सीटों पर इस बार मुकाबला कांटे का तो है ही, बड़ा ही दिलचस्प भी है. यहाँ की छह सीटें हैं – कुटुम्बा, नबीनगर, ओबरा, गोह, रफीगंज और औरंगाबाद. इनमे औरंगाबाद और नबीनगर में तो स्थिति कुछ ख़ास ही बनी हुई है. औरंगाबाद से जहाँ पूर्व मंत्री और श्री सुशील मोदी के कृपापात्र श्री रामाधार सिंह लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं नबीनगर में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष श्री गोपाल नारायण सिंह के चुनाव लड़ने से यह सीट महत्त्वपूर्ण हो गयी है. फिरभी यहाँ का चुनाव यदि दिसचस्प है तो किन्ही वीआईपी के यहाँ चुनाव लड़ने से नहीं, बल्कि दोनों ही सीटों पर अलग-अलग स्थितियों के कारण.

औरंगाबाद में तो खासकर बड़ी ही विचित्र स्थिति है. यहाँ भाजपा के लोग कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन करते नजर आ रहे हैं तो कांग्रेस के लोग भाजपा के साथ दिखायी दे रहे हैं. अपनी पार्टी का विरोध नीचे के कार्यकर्ताओं के स्तर पर हो तो भी गनीमत. पर यहाँ तो यह विरोध शीर्ष स्तर पर ही है. औरंगाबाद से सांसद भाजपा के श्री सुशील सिंह हैं. पिछले चुनाव से पहले तक वह जदयू में थे, पर औरंगाबाद के भाजपा विधायक श्री रामाधार सिंह के भारी विरोध के बावजूद वह सिर्फ पार्टी में शामिल ही नहीं हुए, बल्कि लोकसभा चुनाव जीते भी. तभी से वह श्री रामाधार सिंह को पटकनी देने का मौक़ा तलाशते रहे थे. उनके इस पार्टी विरोध की चर्चा यहाँ इतनी आम है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा. बताते हैं कि जिले के अपने तीन दौरों में उन्होंने सांसद को जमकर डांट पिलायी. उनकी पहल पर सांसद महोदय ने जिले के छहों उम्मीदवारों को अपने घर बुलाया और श्री रामाधार सिंह सहित सभी से गले मिलकर उन्हें अपनी शुभकामनाएं दी. पर देखने वालों ने कहा – गले तो मिल लिए, पर क्या दिल भी मिले! जब लोकसभा चुनाव लड़ाने के लिए श्री सुशील सिंह को भाजपा में शामिल कराने की बात चल रही थी तब भी मैंने कहा था कि पार्टी के हित में यह सही नहीं होगा और पार्टी में अंदरुनी कलह बढ़ जाएगा.

वैसे यदि श्री रामाधार सिंह यहाँ से हारते हैं तो इसके पीछे सांसद की पार्टी विरोधी भूमिका तो होगी ही, उनके प्रति यहाँ के वैश्य समाज की नाराजगी भी कम बड़ा कारण नहीं होगा. अभी हाल में ही संपन्न विधान परिषद् चुनाव में उन्होंने वैश्य समुदाय के उम्मीदवार को हराने में ख़ास भूमिका निभाई थी. उन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि इस क्षेत्र से यदि कोई बनिया जीत जाएगा तो मैं अपनी मूछें मुड़ा लूँगा. हालाँकि इस चुनाव में वह अपनी पार्टी के उम्मीदवार का ही समर्थन कर रहे थे, पर एक खास जाति समुदाय के खिलाफ बोल-बोल कर उन्होंने उसे अपने खिलाफ कर लिया और अब यह उनके लिए संकट का कारण बन गया है. वैश्य समुदाय के लोगों की भावना को देखते हुए इसी समाज के युवा श्री कुमार गौरव चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं और उन्हें अपनी जाति का पुरजोर समर्थन मिल रहा है. वैश्य समुदाय के पारंपरिक वोट के खिसक जाने से भाजपा उम्मीदवार की हालत बुरी हो जाना लाजमी है.

औरंगाबाद विधान सभा क्षेत्र में औरंगाबाद तथा देव प्रखंड शामिल है. पिछली बार देव के भारी समर्थन के बल पर ही श्री रामाधार सिंह चुनाव जीते थे. इस बार उन्हें देव से भी भारी विरोध का सामना करना पद रहा है. उन्होंने अपनी बदजुबानी से क्षेत्र के भाजपा कार्यकर्ताओं को खासा नाराज कर रखा है. श्री रामाधार सिंह के लिए यदि कोई ढाढस की बात हो सकती है तो यही कि कांग्रेस में भी सबकुछ ठीकठाक नहीं है. यहाँ के दिग्गज कांग्रेस नेता श्री निखिल कुमार इस सीट से अपने परिवार के श्री राकेश कुमार सिंह उर्फ़ पप्पू सिंह को चुनाव लड़ाना चाहते थे, पर सीट बंटवारे में उनकी एक न चली और उनके विरोध के बाद भी यहाँ के युवा कांग्रेस नेता श्री आनंद शंकर सिंह टिकट लेकर आ गए. अब श्री निखिल कुमार चुनाव प्रचार से भी खुद को दूर रखे हुए है. कांग्रेस के लोग भी अलग-अलग कारणों से अपने उम्मीदवार का विरोध कर रहे है.

बगल की सीट नबीनगर पर भाजपा के उम्मीदवार श्री गोपाल नारायण सिंह को दूसरी तरह के विक्षोभ और विरोध का सामना करना पड़ रहा है. यह विधानसभा क्षेत्र पड़ता तो औरंगाबाद जिले में है पर यहाँ का सांसद काराकाट क्षेत्र का है, जो कि रोहतास जिले में शामिल है. लोकसभा चुनाव में भाजपा में काराकाट लोकसभा सीट राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के हिस्से में दे दी थी और उसके अध्यक्ष श्री उपेन्द्र कुशवाहा यहाँ से भारी मतों से जीते थे. क्षेत्र के लोगों का कहना है कि वह यहाँ अपने प्रचार के लिए भी सिर्फ कुछ दिन ही आये थे पर भाजपा के नाम पर उन्हें जिता दिया गया, लेकिन जीतने और केन्द्र में मंत्री बनने के बावजूद वह यहाँ दुबारा नहीं आये. अब भाजपा ने एक और बाहरी उम्मीदवार को यहाँ से चुनाव मैदान में उतारा है, वह भी यहाँ कि सुध लेगा कि नहीं पता नहीं.

विपक्ष इस स्थिति का लाभ उठाते हुए प्रश्न कर रहा है – सांसद गंगा पार के और विधायक सोन पार के? यहाँ से लोजपा के टिकट पर श्री विजय कुमार सिंह उर्फ़ डब्लू का चुनाव लड़ना तय माना जा रहा था. भाजपा से खुद मेरे नाम की भी चर्चा थी. बल्कि मांझी की पार्टी हम की उम्मीदवार श्रीमती लवली आनंद का दावा खारिज कर यहाँ से भाजपा की उम्मीदवारी सुनिश्चित कराने में मेरी भागीदारी भी रही. यहाँ तक कि डब्लू सिंह इस पर रजामंद थे कि यदि मैं चुनाव लड़ता हूँ तो वह नहीं लड़ेंगे. मेरे साथ श्री गोपाल नारायण सिंह या श्रीमती लवली आनंद की तरह बाहरी फैक्टर भी नहीं था, पर मेरे और श्री विजय कुमार सिंह की उम्मीदवारी को धता बताते हुए श्री गोपाल नारायण सिंह खुद चुनाव मैदान में कूद पड़े. पर उन्हें नाकों चने चबाने पड़ रहे है. श्री विजय कुमार सिंह यहाँ से विधायक रह चुके है और तब उन्होंने अब के सांसद श्री सुशील कुमार सिंह की जमानत जब्त कराकर चुनाव निकाला था. वह फिर से खड़े है और इस वजह से भाजपा उम्मीदवार का भारी नुकसान हो रहा है.

हालांकि श्री रामाधार सिंह भी यह नहीं चाहते कि श्री गोपाल नारायण सिंह चुनाव जीतें. इससे खुद उनका मंत्री पद संकट में पड़ जा सकता है. लोगों का विचार है कि श्री रामाधार सिंह के नेता श्री सुशील मोदी ने जान बूझ कर श्री गोपाल नारायण सिंह को यहाँ फसाया है. वह मांद में घेर कर शेर को मारना चाहते थे. श्री सुशील मोदी और श्री गोपाल नारायण सिंह के बीच छतीस का जो आंकड़ा है, उससे सभी वाकिफ है,

भाजपा इस स्थिति से नावाकिफ नहीं है. प्रधान मंत्री सहित उसके तमाम बड़े नेता इस जिले का दौरा कर चुके है. राष्ट्रिय अध्यक्ष श्री अमित शाह जिले में तीन-तीन चुनावी सभा कर चुके है. श्री राजनाथ सिंह और श्री राधामोहन सिंह तो छोटे-छोटे गाँव और चट्टी तक अपना भाषण दे आये है, पर स्थिति संभलती नज़र नहीं आ रही है. पहले माना जा रहा था कि रफीगंज विधान सभा क्षेत्र में श्री प्रमोद सिंह किसी भी पार्टी से चुनाव जीत जायेंगे क्योंकि वह लम्बे समय से यहाँ सक्रीय रहे है. वैसे वह भाजपा में थे और उसी पार्टी का टिकट मांग रहे थे. पर जाने क्या सोच कर पार्टी ने यह सीट लोजपा को दे दी जबकि वहां से इस पार्टी का कोई आधार नहीं है. हालाँकि लोजपा ने श्री प्रमोद सिंह को ही यहाँ से उम्मीदवार बनाया है. माना जाता है कि इसके लिए उन्होंने बड़ी राशी खर्च की और टिकट की रेस में सांसद श्री सुशील सिंह के भाई श्री सुनील सिंह तक को पछाड़ दिया. लोगों का मानना है कि यदि भाजपा के टिकट पर श्री प्रमोद सिंह रफीगंज से चुनाव लड़ते और लोजपा के टिकट से श्री विजय कुमार सिंह नबीनगर से चुनाव लड़ते तो दोनों ही सीटें आसानी से एनडीए की झोली में आ जातीं. अब दोनों पर ही संदेह बना हुआ है.

कुल मिला कर इस जिले में स्थिति यह है कि यहाँ से भाजपा गठबंधन को हद से हद तीन सीटें मिलती दिखाई दे रही है. यदि यह संख्या दो ही रह जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा. जबकि वह यहाँ से कम से कम पांच सीटें आसानी से जीत सकती थी.

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