कहां आगरा का ताजमहल और कहां मेक्सिको के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित चिचन इट्ज़ा, दोनों में क्या रिश्ता हो सकता है भला? पर ठहरिये, जान लीजिये, दोनों एक ही सूत्र से जुड़े हुए हैं। क्या हो सकता है उनके बीच के संबंध का आधार? यही तो, दोनों ही विश्व के सात आश्चर्यों में शामिल है – दि सेवेन वन्डर्स ऑफ दि वर्ल्ड।
पिछले दिनों घूमते-घामते मैं मेक्सिको चला गया। उद्देश्य था इसी चिचन इट्ज़ा को देखना। कैनकुन के समुद्र तट से मैं जब बस पर सवार होकर चिचन इट्ज़ा के लिए रवाना हुआ तो गाइड बताता चला – विश्व के सात आश्चर्यों में शुमार है हमारा चिचन इट्ज़ा। और इसी क्रम में उसने छह और स्थानों के नाम गिनाये – चीन की दीवार, जार्डन का पेट्रा, ब्राजिल की क्राइस्ट मूर्ति, पेरू का माचू पिच्चू, इटली का कोलोजि़यम, मिस्र का पिरामिड और भारत का ताज महल। हमारा अपना ताज महल। सीना गर्व से फूल उठा। औप गरदन गर्व से तन गई, जब उसने जानना चाहा कि क्या कोई भारतीय है इस यात्रा में? मैं हूं – मैंने आवाज लगाई और अन्य सैलानियों ने ईर्ष्या भरी नजरों से मेरी ओर देखा।
चिचन इट्ज़ा में न तो वह सौंदर्य है, न माधुर्य है और ना ही वह रूमानियत है, जो ताज महल में देखने को मिलती है। फिर भी कुछ तो है ऐसा कि यह ताज महल की कतार में खड़ा है, दुनिया केसात आश्चर्यों में एक होकर। ताज महल से हजार साल से भी अधिक पुराना है यह चिचन इट्ज़ा। ताज महल बनकर तैयार हुआ 1648 ईस्वी में, जबकि चिचन इट्ज़ा की इमारतें 600 ईस्वी की बनी हैं। जाहिर है, जो कारीगरी ताज महल में दिखाई देती है, वैसी कारीगरी का तब न तो चलन था, न कौशल, और ना ही वैसी इमारतें बनाने की सुविधा। फिर भी एक कमाल की बात है यहां की मुख्य इमारत में, जिसे पिरामिड ऑफ कुकुलकान नाम से जाना जाता है। ज्यामिट्री में मैंने पढ़ा था कि पिरामिड के तीन पक्ष (साइड) होते हैं, और यहां आकर मैं देखता हूं एक ऐसा पिरामिड जिसके कुल चार पक्ष हैं। है ना अद्भुत बात!
पर जरा ठहरिये। अभी मैंने इसकी अद्भुत बात बताई ही कहां है? महज चार साइड का पिरामिड होने से शायद इसे विश्व के सात आश्चर्यों में शुमार नहीं किया जाता। इसकी खासियत तो कुछ और ही है जो इसे सिर्फ अद्भुत ही नहीं बनाती, बल्कि बेजोड़ भी बना देती है। सीढ़ियां ही सीढ़ियां हैं इस इमारत में। कभी लोग उनपर चढ़कर उसकी ऊंचाई का आननन्द लेते थे, अब इनपर चढ़ने की इजाजत नहीं है। इसे टूटने से बचाने के लिए ऐसा करना पड़ा है। हर एक तरफ कुल 91 सीढ़ियां है यानी कि चारों ओर मिलाकर कुल 364 सीढ़ियां। बात कुछ समझ में आती है? अब भी नहीं समझ पाये तो कुछ और जान लीजिये। इन 364 सीढ़ियों के अलावा एक और सीढ़ी भी है जो चारों दिशाओं की सीढ़ियों को जोड़ती है। यानी कि कुल मिलाकर 365 सीढ़ियां। 365? जी हां, इतने ही तो दिन होते हैं पूरे् साल में। और चार ऋतुओं में ही विभक्त होते हैं ये 365 दिन।
तो आज जो कैलेण्डर हम साल-दर-साल बदलते हैं, उसी का मूर्त रूप है चिचन इट्ज़ा का यह पिरामिड ऑफ कुकुलकान। और यही बात इसे अदुभुत बनाती है – अदुभुत और विशिष्ट। यह कमाल है प्राचान काल से यहां रहनेवाले माया लोगों का। बचपन से ही मैं मायानगरी के किस्से सुनता रहा था और अब आ सका हूं यहां। तो बचपन के सुने ये किस्से महज किस्से नहीं थे। वास्तव में थी कोई मायानगरी। यहां आकर मुझे पता चलता है कि यह मायानगरी केवल मेक्सिको के दक्षिणी भाग तक ही सीमित नहीं थी। इसके अवशेष मेक्सिको के अलावा ग्वाटमाला, बेजीज और होंडुरास में भी पाये जा सकते हैं। माया सभ्यता के बुलन्द स्थानों का भले ही नाश हो गया हो, पर बताते हैं कि माया लोग आज भी मौजूद हैं और सैकड़ों या हजारों नहीं, लाखो की संख्या में इन देशों में फैले हुए हैं।