दोस्तोयेव्सकी का शराबी और डिकेन्स का भूत
हाल में दो कहानियां पढ़ीं – रूसी लेखक फ्येदोर दोस्तोयेव्सकी की कहानी, ऐन ऑनेस्ट थीफ और ब्रिटिश लेखक चार्ल्स डिकेन्स की कहानी, दि सिग्नलमैन। अंग्रेजी में कहें तो दोनों ही शार्ट स्टोरी हैं। हिन्दी में शार्ट स्टोरी का मतलब लघुकथा हो जाता है, जबकि अंग्रेजी में शार्ट स्टोरी वे होती हैं, जिन्हें हिन्दी में हम कहानी कहते हैं। ऐन ऑनेस्ट थीफ के अंग्रेजी अनुवाद में पौने आठ – आठ हजार शब्द हैं, जबकि दि सिग्नलमैन लगभग पाँच हजार शब्दों की कहानी है। दोस्तोयेव्सकी की कहानी ऐन ऑनेस्ट थीफ पहले-पहल 1848 में छपी थी, जबकि चार्ल्स डिकेन्स की कहानी दि सिग्नलमैन 1866 में। यानी दोनों एक ही कालखंड की कहानियां हैं, जोकि अलग-अलग भूखंडों में लिखी गई और परस्पर भिन्न स्थितियों को सामने लाती हैं। पहली कहानी जहां एक ऐसे चोर की कथा है, जिसे अपनी चोरी का पछतावा है, तो दूसरी को हम भूतहा कहानी भी कह सकते हैं। हां दोनों कहानियां विश्व साहित्य में अप्रतिम स्थान रखती हैं।
दोनों ही कहानियां प्रथम पुरुष में कही गई हैं यानी मैं की शैली में। यह भी गजब संयोग है कि दोनों ही कहानियों में तीन-तीन पात्र हैं। दोनों कहानियों में कथावाचक किन्ही अनजान व्यक्ति के साथ के अपने अनुभव साझा कर रहा होता है। दोस्तोयेव्सकी का यह अनजान व्यक्ति तो फिर भी कथावाचक के साथ इतने समय से रह रहा था कि दोनों के बीच अबूझ संबंध कायम हो गया, लेकिन डिकेन्स के अनजान व्यक्ति के साथ कथावाचक की भेंट तो जुम्मा के जुम्मा चार दिनों की ही थी। और उससे भी बड़ा संयोग शायद यह कहा जा सकता है कि दोनों ही कहानियों में कथा नायक या उस अनजान व्यक्ति की मौत हो जाती है और इसी के साथ इन दोनों ही कहानियों का त्रासद अन्त होता है। पहली कहानी एक चोर के प्रति हमारी सहानुभूति बटोरने में सफल रहती है तो दूसरी कहानी जीवन की अनिश्चितता का उद्घाटन करते हुए हममें रहस्यमय दुनिया का खौफ पैदा करती है। बहरहाल दोनों ही मानवीय संवेदनाओं की कहानियां हैं।
जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूं, दोनों कहानियों में तीन ही पात्र हैं। ऐन ऑनेस्ट थीफ में लेखक के साथ-साथ कथावाचक और पियक्कड़ है तो दि सिग्नलमैन में लेखक के अलावा रेल गुमटी पर तैनात कर्मी तथा भूत। यानी कि पहली कहानी में लेखक तथा कथावाचक भिन्न हैं, जबकि दूसरी में लेखक ही कथावाचक भी है। ऐन ऑनेस्ट थीफ का कथावाचक कहानी के लेखक को कहानी सुनाता है, जबकि दि सिग्नलमैन का कथावाचक कहानी के पाठकों से सीधे रु-ब-रू है। यहां लेखक को कहानी का पात्र ही मानना चाहिए, दोस्तोयेव्सकी या डिकेन्स नहीं। चाहे वह ऐन ऑनेस्ट थीफ का कथावाचक या फिर सिग्नलमैन का कथावाचक-लेखक दोनों ही मानवीय संवेदनाओं से भरपूर हैं। तभी तो ऐन ऑनेस्ट थीफ का कथावाचक जहां अजनबी पियक्कड़ का आश्रयदाता बन जाता है, वहीं दि सिग्नलमैन का लेखक अजनबी रेलकर्मी का उपचार किसी मनोचिकित्सक से कराने की पेशकश करता है। एक और मार्के की बात, पहली कहानी का नायक जहां वास्तव में मनोविकार का शिकार है, वहीं दूसरी कहानी के नायक को मनोविकार का शिकार मान लिया जाता है।
ऐन ऑनेस्ट थीफ के पियक्कड़ नायक एमेलियन का अस्तित्व किसी कुत्ते जैसा ही है, जो रोटी के चन्द टुकड़ों के लिए अपने मालिक के इर्द-गिर्द दुम हिलाता घूमता है। हालांकि उसे अपने खाने की परवाह नहीं है, वह तो ऐसा शराबखोर हो चुका है, जिसे अब शराब ही जिन्दा रख सकती है। वह एक ऐसा चिकना घड़ा है, जिसपर किसी नसीहत का कोई असर नहीं होता, भले ही उससे कुछ काम करने को कहा जाए, या फिर पीने से परहेज करने को। सही मायने में वह सोवियत संघ के उन व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है, जो वहां की तत्कालीन सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था की वजह से अपनी तमाम महत्वाकांक्षाएं खो चुके थे। बल्कि उसे जब पीने को शराब नहीं दी जाती तो वह अपने आश्रयदाता का कीमती पोशाक चुराकर शराब खरीद लेता है। पूछे जाने पर वह हर बार झूठ कहता है लेकिन पोशाक चुराने का मलाल उसे जिन्दगी की आखिरी साँस तक कचोटता रहता है और मरने से पहले वह चोरी की बात स्वीकार लेता है।
दूसरी तरफ दि सिग्नलमैन एक ऐसे रेलकर्मी की कहानी है जो अपनी ड्यूटी को इमानदारी से निभाने की कोशिश करता है, पर समय-समय पर उसे किसी भूत के दर्शन होते हैं जो एक खास तरीके से इशारा कर के उससे पूछता है “हेलो, कौन है वहां?” यह कहानी “हेलो, कौन है वहां?” से शुरु होकर “हेलो, कौन है वहां?” पर ही खत्म होती है। इस बीच भी यह वाक्यांश उस रेलकर्मी को कई बार सुनाई देता है और जब भी सुनाई देता है तब कोई न कोई अनहोनी होकर रहती है। अंतिम बार जब यह वाक्यांश उसे सुनाई देता है तो उसके साथ ही रेलकर्मी की जीवनलीला भी खत्म हो जाती है। लेखक को अंधविश्वास पर कतई विश्वास नहीं है और इसीलिए उसके लिए वह कर्तव्यनिष्ठ रेलकर्मी किसी मानसिक रोगी की तरह है जो अपने अकेलेपन से त्रस्त हो चुका है। ऐसे में वह उसकी मदद करना चाहता है और उसे किसी मनोचिकित्सक से मिलाने की बात कहकर चला जाता है, पर जब अगली बार वह उस स्थान पर आता है, जहां से उसने उस रेलकर्मी को देखा था तब उसे नीचे कुछ और लोग दिखाई देते हैं। नीचे उतरने पर उसे पता चलता है कि वह रेलकर्मी तो रेल दुर्घटना का शिकार हो चुका। मार्के की बात यह कि जिस रेलगाड़ी से दुर्घटना हुई, उसके ड्राइवर ने उसे दुर्घटना से बचाने के लिए आवाज दी थी, “हेलो, कौन है वहां?” और साथ ही उसी खास अंदाज में उसकी मुद्रा हो गई थी, जो उस रेलकर्मी को आक्रांत करती रही थी। कहानी के अंत में पाठकों के सामने सवाल उठ खड़ा होता है, जाने कौन था वहां?
यह भी मार्के की बात है कि एक कहानी का नायक जहां अपने कर्तव्यों से मुंह चुराते हुए दयनीय मौत का शिकार होता है, वहीं दूसरी कहानी का नायक अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते रहकर भयावह मौत के मुंह में पहुंच जाता है।