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रंजन कुमार सिंह

कहीं आषाढ़ का अन्त तक नहीं हुआ और कहीं श्रावण चढ़ भी गया। दरअसल कृष्ण पक्ष की इस षष्ठी का मास अमांत आषाढ़ है और मास पूर्णिमांत श्रावण। है ना यह आश्चर्य की बात?

यह तो हम जानते हैं कि चाहे वह अंग्रेजी का कैलेंडर हो या फिर हिन्दी का पंचांग, दोनों में महीनों की संख्या 12 ही होती है। अंग्रेजी यानी कि ग्रेगेरियन कैलेंडर में वर्ष जनवरी से शुरु होकर दिसम्बर तक चलता हैं। बीच में फरवरी, मार्च, अप्रैल, मई, जून,जुलाई, अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर और नवम्बर माह इसी क्रम में आते हैं। दूसरी ओर हिन्दू वर्ष चैत्र से शुरु होकर फाल्गुन पर खत्म होता है। बीच में वैशाख, ज्येष्ठ, अषाढ़, श्रावण, भाद्रपद,अश्विन, कार्तिक, अगहन,पौष और माघ महीना इसी क्रम में पड़ता है।

यह भी हम जानते हैं कि अंग्रेजी कैलेंडर जहां सूर्य की गति पर आधारित है, वहीं हिन्दू पंचांग चन्द्रमा की गति पर। सूर्य का आकार हर समय एक सा ही रहता है जबकि चन्द्रमा का आकार प्रति दिन घटता या बढ़ता रहता है। जिस दिन चन्द्रमा हमें पूरा दिखता है, वह दिन पूर्णिमा कहलाता है। जिस दिन चन्द्रमा का पूर्ण लोप हो जाता है, उस दिन को हम अमावस्या कहते हैं। अमावस्या से पूर्णिमा तक एक पक्ष और पूर्णिमा से अमावस्या तक दूसरा पक्ष होता है। दोनों पक्षों को मिलाकर एक माह होता है। जिस पक्ष का अन्त पूर्णिमा से होता है, उसे शुक्ल कहते हैं और जिस पक्ष का अन्त अमावस्या से होता है, उसे कृष्ण।

अंग्रेजी वर्ष 365 दिनों का होता है और हर चौथे साल उसमें एक दिन और जोड़ दिया जाता है। दूसरी तरफ हिन्दू पंचांग में वर्ष 355 दिनों का ही होता है और हरेक तीन साल पर इसमें तीस दिन जोड़े जाते हैं। इस तरह हिन्दू पंचांग में वर्ष. अंग्रेजी कैलेंडर वर्ष से दस दिन छोटा होता है। निश्चित संख्या के हिसाब से सौर तथा चन्द्र वर्ष का अंतर ठीक 11 दिन, 3 घटी तथा 48 पल का है। इसी कारण हर तीसरे साल एक माह जोड़ने की जरूरत होती है। वैसे तो ये अतिरिक्त दिनों को चन्द्रमास ही मानते हैं पर इन्हें सुविधा की दृष्टि से मलमास या अधिमास कहा जाता है।

मुख्य चन्द्रमास पूर्णिमा से शुरु होकर अमावस्या पर खत्म होता है इसलिए यह अमंत कहलाता है, जबकि गौण चन्द्रमास का आरंभ अमावस्या से होता है और उसकी समाप्ति पूर्णिमा को होती है। इस कारण वह पूर्णमांत कहलाता है। दूसरे शब्द मे कहें तो शुक्ल प्रतिपदा से शुरु होकर अमावस्या पर खत्म होने वाला महीना अमांत है और कृष्ण प्रतिपदा से शुरु होकर पूर्णिमा तक चलनेवाला महीना पूर्णमांत। प्रतिपदा पक्ष का पहला दिन होता है। चतुर्दशी या चौदह दिनों के बाद पूर्णिमा आती है या फिर अमावस्या। अंग्रेजी कैलेंडर में दिन की गणना जहां 1 से 30 या 31 तक चलती है, वहीं हिन्दू पंचांग में दिनों की गणना प्रतिपदा से शुरु होकर अमावस्या या पूर्णिमा तक जाती है। बीच में द्वितीया से लेकर चतुर्दशी तक की तिथियां होती हैं। इस तरह संख्यावाचक तिथियां चन्द्रमास दो बार आती हैं। एक बार शुक्ल पक्ष में और फिर कृष्ण पक्ष में। पूर्णमांत मास पहले शुरु हो जाता है। यही कारण है कि अब जबकि पूर्णमांत मास का श्रावण चढ चुका है, अमांत मास का श्रावण अब भी दूर है। यह 29 जुलाई को आरंभ होगा। तब अमांत और पूर्णांत मास एक हो रहेगा। यानी दोनों के अनुसार चन्द्रमास श्रावण ही होगा।

पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, माह का नाम उसी अनुसार होता है। पर यहां भी एक अड़चन आ जाती है।
नक्षत्रों की कुल संख्या 27 है, जबकि माह सिर्फ 12 ही हैं। ऐसे में जाहिर है कि सभी नक्षत्रों के नाम से महीनों का नामकरण नहीं हो सकता। जिन नक्षत्रों के आधार पर चन्द्रमासों का नामकरण हुआ है, वे हैं अश्विन, कृतिका, पुष्य, मघा, पूर्ण एवं उत्तर फाल्गुनी,
चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्ण एवं उत्तर आषाढ़ा. श्रवण तथा पूर्व एवं उत्तर भाद्रप्रद। कोशिश करने से आप पहचान ले सकते हैं कि इसमें से किस नक्षत्र ने किस हिन्दी चन्द्रमास को नाम दिया होगा।

आपने ध्यान दिया होगा कि यहां 11 चन्द्रमासों के नाम ही ऐसे हैं जो इन नक्षत्रों के नामों से मेल खाते हैं। अगहन या
अग्रहायण नाम किसी भी नक्षत्र के नाम से मेल नहीं खाता। दरअसल, प्राचीन काल में हिन्दू पंचांग का आरंभ इसी मास से होता था, इसीलिए यह अग्रहायण कहलाया। चूंकि यह माह मृगशिरा नक्षत्र से जुड़ा है, इसलिए इसे मार्गशीष भी कहते हैं। परन्तु मार्गशीष नाम प्रचलित नहीं है।

पुनश्च – अपने सीमित अध्ययन एवं ज्ञान के आधार पर इस विषय में मैं जो सोच-समझ पाया, मैंने वही यहां साझा किया है। हो सकता है मेरी बातें अपूर्ण हों और यह भी हो सकता है कि इसमें कुछ दोष हो, पर मेरी कोशिश यही रही है कि जितना सही जानकारी मैं दे सकूं, वह दूं। इसके पीछे मेरा प्रयोजन यह रहा है कि हिन्दू शास्त्र के प्रति आपमें कुछ उत्,कता जगा सकूं ताकि आप स्वयं ही इस दिशा में प्रेरित होकर अधिक जान-समझ सकें। जानकार और विद्वान इसमें कुछ जोड़-घटा कर सकें तो यह और भी उपयोगी हो सकता है।

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3 Comments

  1. बहुत ही रोचक और जानकारी से भरपूर आलेख। आपको बहुत बहुत बधाई ???

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