संयुक्त राष्ट्र संघ महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने अपने हाल के भारत दौरे में कहा कि विश्व स्तर पर भारत की बात का महत्व तभी होगा, जबकि वह खुद अपने यहां समावेशिता तथा मानवाधिकारों के प्रति सम्मान को लेकर प्रतिबद्ध हो। अनेकता में एकता का भारतीय मॉडल इस समझदारी पर आधारित है कि यहां की विविधता देश को और मजबूत बनाती है। हालांकि यह समझदारी यहां पैदा होने से ही नहीं आ जाती, बल्कि उसे लगातार पोषित एवं मजबूत करना होता है। ऐसा गाँधी के मूल्यों को अपना कर ही किया जा सकता है। यह समझ सभी के अधिकारों एवं उनके मान-सम्मान को सुरक्षित रखकर ही बढ़ाई जा सकती है। अनेक धर्म, संस्कृति एवं जातियों के महत्व एवं योगदान को समझ कर ही ऐसा किया जा सकता है। विद्वेष पैदा करनेवाले वक्तव्यों को पूरी तरह से नकार कर, पत्रकारों, माववाधिकार कार्यकर्ताओं, विद्यार्थियों तथा शिक्षाविदों के अधिकारों एवं स्वतंत्रता की रक्षा कर के, तथा भारत की न्याय व्यवस्था को बरकरार रखते हुए ही ऐसा किया जा सकता है।
एंटोनियो गुटेरेस ने यह बात गत 19 अक्टूबर को मुंबई के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में कही, जबकि इसके मात्र दो दिन बाद ही उच्चतम न्यायालय ने वैमन्यपूरण भाषणों पर अपने एक फैसले में कहा कि भारत का संविधान भारत को पंथनिरपेक्ष राष्ट्र एवं समाज के तौर पर समादृत करते हुए व्यक्ति के मान-सम्मान तथा देश की अखंडता एवं एकता को सुनिश्चत करता है। यही इसकी प्रस्तावना का मार्गदर्शक सिद्धान्त है। जब तक देश के सभी धर्मों एवं जातियों के लोगों में सद्बाव नहीं होगा, उनके बीच भाईचारा नहीं हो सकता। अतः इस न्यायालय का कर्तव्य बनता है कि वह लोगों के मूलभूत अधिकारों एवं देश के संवैधानिक मूल्यों के साथ ही विधि व्यवस्था की रक्षा भी करे।
क्या यह महज संयोग है कि जो बात हमारे देश का उच्चतम न्यायालय कह रहा है, वही बात संयुक्त राष्ट्र संघ भी कह रहा है? क्या यह सही नहीं कि आज देश के भीतर ही नहीं, बल्कि देश के बाहर भी हमारी यह छवि बनती जा रही है कि यहां धर्म एवं जाति के आधार पर लोगों को बंटकर देखा जाने लगा है तथा अल्पसंख्यक तो क्या, पत्रकारों, शिक्षाविदों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, विद्यार्थियों किसी के भी मूल अधिकार आज यहां सुरक्षित नहीं हैं।
यह भी गौरतलब है कि हम अपने देश में गाँधी और उनके मूल्यों की चाहे जो गत कर दें, पर इस देश के बाहर का संसार गाँधी की बातों में ही त्राण पाता है। मैं यदि कहूं कि गाँधी को हमसे कहीं अधिक दुनिया ने समझा है तो शायद गलत नहीं होउंगा। गाँधी के बताए रास्तों पर चलने के लिए हमसे कहीं अधिक दुनिया तैयार है। और यह बात कहते हुए मेरा ध्यान श्री गुटेरेस की इस बात पर भी है जिसमें उन्होंने कहा, और जैसा कि मॉरिशस के प्रधानमंत्री ने बताया कि महात्मा गाँधी ने हमें याद कराया है कि दुनिया में सभी लोगों की जरूरत के अनुसार पर्याप्त संसाधन हैं, पर किसी एक के लोभ की भरपाई के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं।
मजे की बात यह है कि एंटोनियो गुटेरेस यह बात गुजरात में हमारे प्रधानमंत्री की मौजूदगी में कह रहे थे। क्या वह हमें बताना चाहते थे कि जिस बात को गाँधी का अपना देश भूल बैठा है, वह बात दूसरे देशों के लिए प्रेरणा बनी हुई है। हमारे ही गाँधी को किसी और के हवाले से कोई और ही उद्धृत करे, इससे ज्यादा शर्मिंदगी हमारे लिए और क्या हो सकती है।
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