जब श्रीमती प्रतिभा पाटिल देश की पहली महिला राष्ट्रपति चुनी गईं तब भी यह चर्चा आई थी कि उन्हें राष्ट्रपति कहेंगे या राष्ट्रपत्नी। जिनकी नजर शब्दों पर रहती है, उन्हें ऐसा लग सकता है कि जैसे बालक-बालिका, चाचा-चाची, पति-पत्नी आदि होते हैं, वैसे ही राष्ट्रपति और राष्ट्रपत्नी भी सही होगा। पर ऐसा नहीं है। राष्ट्रपति शब्द पति शब्द की तरह अभिधा नहीं है। अभिधा उन शब्दों को कहते हैं, जिनके अर्थ में कोई अंतर नहीं होता। पति कहने पर दम्पति में पुरुष का बोध जगता है और पत्नी कहने से दम्पति में स्त्री का। यानी पति और पत्नी शब्द दाम्पत्य से जुड़ा हुआ है। लेकिन राष्ट्रपति शब्द का कतई कोई संबंध दाम्पत्य से नहीं है। यह अभिधात्मक न होकर अभिव्यंजनात्मक शब्द है। अभिव्यंजना उन शब्दों को कहते हैं जिनका अर्थ सतही अर्थ से भिन्न होता है।
राष्ट्रपति शब्द का मतलब राष्ट्र का पति नहीं होकर राष्ट्र का अधिष्ठाता होता है। पति और पत्नी जहां एकल शब्द के तौर पर दामप्त्य से जुड़े हैं, वहीं किसी अन्य शब्द से जुड़कर पति स्वामी का अर्थ जताता है। धनपति, पशुपति, विद्यापति, लखपति, अरबपति आदि ऐसे ही शब्द हैं। हम कह सकते हैं कि प्रत्यय के तौर पर जब पति का प्रयोग होता है, तब उसका अर्थ स्वामी हो जाता है। पत्नी का प्रयोग कभी प्रत्यय के तौर पर नहीं किया जाता। प्रत्यय शब्द का वह हिस्सा होता है जिसे बाद में मिलाकर एक नया शब्द बना लिया जाता है, जैसे वार्ता मे कार लगाकर वार्ताकार या लेख में क लगाकर लेखक। यह सही है कि आम तौर पर पति प्रत्यय स्वामी का ही अर्थ देता है, पर राष्ट्रपति को राष्ट्र का स्वामी कहना गलत होगा क्योंकि राष्ट्रपति बनने से किसी का स्वामित्व राष्ट्र पर नहीं हो जाता।
जैसे मंत्री चाहे कोई पुरुष हो या महिला, उसे मंत्री ही कहा जाता है, वैसे ही राष्ट्रपति पुरुष हो या महिला, वह राष्ट्रपति ही है। यह पदनाम है, जिसका कोई विलोम नहीं और ना ही कोई स्त्रीवाची शब्द है। हिन्दी में राष्ट्रपत्नी शब्द है ही नहीं। कहने का मचलब यह कि पति और पत्नी जहां पुलिंग और स्त्रीलिंग शब्द हैं, वहीं राष्ट्रपति नपुंसक शब्दों की कोटि में आता है। वैसे हिन्दी में नपुंसक लिंग नहीं होता, यह संस्कृत में होता है। हिन्दी में जिन शब्दों का लिंग वर्गीकरण नहीं होता, उन्हें उभयलिंग का माना जाता है। यानी उन शब्दों का प्रयोग स्त्रीवाची और पुरुषवाची दोनों रूप में होता है। तो उक्त पद पर चाहे पुरुष हो या महिला, वह राष्ट्रपति ही कहलाता है। अनेक ऐसी भाषाएं हें, जहां लिंग व्यवस्था होती ही नहीं, जैसे कि फारसी और तुर्की में। चीनी भाषा की अनेक बोलियों में भी लिंगभेद नहीं है। अंग्रेजी में सर्वनाम के अलावा लिंग भेद नहीं होता। क्रियापद में तो बिलकुल ही नहीं। भारतीय भाषाओं में बांग्ला में लिंग की व्यवस्था नहीं है, जबकि अनेक भारतीय भाषाओं में संस्कृत की तरह ही तीन लिंगभेद हैं। तमिल में तो पाँच प्रकार के लिंगभेद बताए गए हैं।
अभिधा को समझना जितना आसान होता है, व्यंजना को समझना उतना आसान नहीं होता। ऐसे में किसी दूसरे भाषाभाषियों के लिए ऐसा समझना स्वाभाविक है कि राष्ट्रपति का विलोम या उलटा राष्ट्रपत्नी होगा। पति यदि घर का स्वामी है तो पत्नी घर की स्वामिनी, सहज रूप से यही सोचा जा सकता है। पर किसी अन्य शब्द के साथ जुड़कर जहां पति स्वामी का बोध कराता है, वहीं पत्नी शब्द किसी अन्य शब्द से जुड़कर स्वामिनी का बोध नहीं कराता। वैसे भी समाज में पति की प्रतिष्ठा जैसे स्वामी की है, वहीं पत्नी को उसकी अनुगामिनी के तौर पर देखा जाता है, स्वामिनी के तौर पर नहीं। शायद यही कारण है कि प्रत्यय के तौर पर इसका उपयोग अपमानजनक माना जाता है और बिलकुल नहीं किया जाता। इसके बनिस्पत हिन्दी में लक्ष्मी का उपयोग होता है। ऐसे में धनपति का विलोम धनलक्ष्मी है। लक्ष्मी का उपयोग जाहिर तौर पर यहां स्वामिनी के तौर पर ही हुआ है। इसी तरह गजपति का स्त्रीवाची गजपत्नी न होकर गजलक्ष्मी है।
बहरहाल, राष्ट्रपति शब्द भ्रामक है। इस भ्रम से बचने के लिए ही यह प्रस्ताव दिया जाता रहा है कि राष्ट्रपति शब्द के स्थान पर राष्ट्राध्यक्ष शब्द का व्यवहार किया जाए। ऐसा करने से न सिर्फ राष्ट्र पर किसी व्यक्ति या पद के स्वामित्व का भान समाप्त हो जाएगा, बल्कि पति-पत्नी के भ्रामक विलोम से इस शब्द को जोड़ने से भी बचा जा सकेगा।
Badhia gyanwardhak?Bas Rashtradhyaksh ko bhi rashtradhyaksha banayenge alpgyani isliye rashtrapati hi sahi hai.
Rashtadhyaksha per appati nahin hogi kisi ko .
शब्दकोश और शब्द विन्यास के साथ बेहतरीन समझाया आपने रंजन भाई। परंपराएं कुछ शब्दों को परंपरागत बना देती हैं। तब लिंगबोध निरर्थक हो जाता है। वैसे भी राष्ट्रपति पदनाम को आपने अधिष्ठान से जोड़कर बात स्पष्ट की ही है। राष्ट्राध्यक्ष अच्छा शब्द है, पर यह भी लिंगबोध से परे नहीं।
??