बिहार में बिसात बिछ चुकी है. मोहरे सज गए हैं. एक तरफ वर्त्तमान मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार हैं तो दूसरी तरफ से भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी खुद खेल रहे हैं. दिल्ली की हार के बाद किसी और खिलाड़ी के हाथ में बाज़ी देना भाजपा को खतरनाक लगने लगा है. भारी जूतम-पैजार के बाद महागठबंधन के घटकों ने नितीश जी के हाथों में कमान दे दी, पर उन्हें मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने वाले श्री मुलायम सिंह यादव ने ही अपना हाथ उनसे खींच लिया. अब जब वही लालू और नितीश से अलग-थलग हो गए हैं तो उनकी उस घोषणा का भी कोई मायने नहीं है कि महागठबंधन की सरकार के नेता नितीश कुमार होंगे. मुलायम की समाजवादी पार्टी महागठबंधन से बाहर हो चुकी है और उसी तरह राष्ट्रवादी कोंग्रेस भी उससे अलग है. फिर किसकी घोषणा के आधार पर नितीश को महागठबंधन का नेता माना जाए? लालू ने तो रजामंदी ही दिखाई थी, वह भी जहर का घूँट पीकर, नितीश को महागठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री का उम्मीदवार तो मुलायम ने ही घोषित किया था.
बहरहाल नितीश ही अगले मुख्यमंत्री के तौर पर सबसे आगे चल रहे हैं. इसका कारण यही है कि मतदाताओं को उनका चेहरा ही सामने नज़र आ रहा है. यह ख़ुशी-ख़ुशी हो या फिर मजबूरी में, लालू ने नितीश को नेता मान लिया है. वह खुद किंगमेकर बने रहना चाहते हैं. चुनाव वह लड़ ही नहीं सकते तो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचेंगे भी कैसे? वैसे उनके चाहनेवाले ऐसा समझने को तैयार नहीं है. उनके समर्थक तो आज भी उन्हें ही मुख्यमंत्री देखना चाहते है. ताज़ा चुनाव सर्वेक्षणों में उन्हें अगला मुख्यमंत्री बताने वालों की कमी नहीं है. कांग्रेस के लिए तो वैसे भी बिहार में कुछ खोने के लिए नही रहा है. वह यहाँ इस बार 40 सीटों पर चुनाव लड़ रही है तो इसके पीछे नितीश का हाथ माना जा रहा है. वह इसलिए कि लालू को यदि उनसे अधिक सीटें आ जाएँ तो कांग्रेस उनका पलड़ा झुकने न दे.
दूसरी तरफ के हालात इतने सीधे या आसान नहीं है. भाजपा में सबसे प्रभावशाली नेता यदि श्री सुशील मोदी बने हुए हैं तो जनता के बीच उनकी लोकप्रियता बिलकुल नहीं है. भाजपा के ही कुछ नेताओं की माने तो पार्टी यदि उन्हें मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर देती है तो वह चुनाव में चारों खाने चित्त गिर जायेगी. कुछ दुसरे नेताओं की जनता में अच्छी पहचान है तो सुशील मोदी और उनकी टीम ने उन्हें कभी पार्टी में जमने ही नहीं दिया. ऐसे में पार्टी कमजोर रह गयी, पर सुशील मोदी उसपर हावी होते रहे. एक सुशील मोदी को पार्टी में स्थापित करने के लिए अनेक नेताओं की कुर्बानी दी जाती रही, उनमे इन्दर सिंह नामधारी, समरेश सिंह, ताराकांत झा आदि अनेक नाम गिनाये जा सकते है. गौरतलब है कि ये सभी नेता अगड़ी जातियों के रहे. अब भाजपा यदि अपने सबसे प्रभावी नेता को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित नहीं करना चाहती है तो निश्चय ही वह उनकी सीमाएं जानती है. सुशील मोदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं घोषित किये जाने के पीछे उनकी पहले की नरेन्द्र मोदी विरोधी छवि भी कारण हो सकती है, जब उन्हें सारा आकाश नितिशमय ही नज़र आता था.
इस स्थिति का फायदा उठाते हुए कुछ घटक दलों और उनके नेताओं ने अपनी ढपली – अपना राग अलापना शुरू कर दिया. सबसे पहले केन्द्रीय राज्य मंत्री श्री उपेन्द्र कुशवाहा के दल राष्ट्रिय लोक समता पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री पर का दावेदार घोषित कर दिया और कहा कि चूँकि भाजपा में किसी को लेकर सहमति नहीं बन रही, ऐसे में वह इस पद के लिए अपनी सेवायें देने को तैयार हैं. उनकी देखा-देखी मांझी ने भी खुद को इस पद का दावेदार बता दिया. पर जल्दी ही वह चेत भी गए क्योंके उस समय तक भाजपा ने उनकी पार्टी हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा को NDA में शामिल ही नही कराया था. बाद में उन्होंने अपना दावा बदला और खुद को उपमुख्यमंत्री पद का हक़दार बताया. मजे की बात है कि NDA में एक वही हैं जो मुख्यमंत्री रह चुके है और वही जब खुद को उपमुख्यमंत्री के लायक बता रहे हों तो उनकी लाचारगी समझी जा सकती है. NDA के घटक दलों में एक लोजपा ही है, जिसने अपने को मुख्यमंत्री पद के दावे से दूर रखा है. वैसे भाजपा नेता श्री शत्रुघ्न सिन्हा श्री रामविलास पासवान के पक्ष में बोलते रहे है. हालाँकि खुद वह भी स्वयं को प्रदेश का मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं.
बहुत समय से चुप रहे डॉक्टर सी०पी० ठाकुर ने भी अब खुद को इस जिम्मेदारी के लायक बताना शुरू कर दिया है. अपने बेटे विवेक ठाकुर का टिकट फाइनल होने तक वह चुपचाप बैठे रहे थे. भाजपा के ही श्री शाहनवाज़ हुसैन का नाम चुनाव सर्वेक्षणों में अगले मुख्यमंत्री के तौर पर लिया जा रहा है पर उनकी लोकप्रियता कम ही है. ले-देकर प्रधानमंत्री जी के हांथों में ही पार्टी की पतवार है और यदि NDA सत्ता में आयी तो अगला मुख्यमंत्री चोर दरवाजे से ही घुसेगा. मोदी एंड कंपनी को विश्वास है कि वह वही होंगे, पर बिहार की राजनीती में एक हालिया नाम ने सबों को परेशां कर दिया है. अब तक झारखण्ड में भाजपा के संगठन महामंत्री रहे श्री राजेंद्र सिंह को पार्टी ने एक-ब-एक चुनाव मैदान में उतार दिया है. जबकि उन्हें बिहार में शाहाबाद और मगध क्षेत्र का चुनाव प्रभारी बना कर भेजा गया था. इस अप्रत्याशित निर्णय ने सबों को चौकाने का काम किया है. माना यह जा रहा है कि हरियाणा में जैसे मनोहरलाल खट्टर को मुख्यमंत्री बना दिया गया था, वैसा ही कुछ बिहार में भी हो सकता है. खट्टर की तरह ही राजेंद्र सिंह पर भी RSS का हाथ है.