अमेरिका की एक कंपनी है हिन्डनबर्ग रिसर्च। उसका काम है विभिन्न कारोबारी कंपनियों के वित्तीय मामलों की पड़ताल कर के अपनी रिपोर्ट देना। इस बार हिन्डनबर्ग रिसर्च ने भारत के दूसरे नंबर के व्यावसायिक प्रतिष्ठान अडानी समूह को अपना निशाना बनाया है। इस समूह के वित्तीय मामलों की पड़ताल अकारण नहीं है। समूह के अधिष्ठाता गौतम अडानी को लेकर भारत में भी सवाल उठते रहे हैं। रातों-रात कोई रंक से राजा नहीं हो जाता। भले ही गौतम अडानी कोई रंक न थे पर महज तीन साल में अगर किसी की सम्पत्ति में 819 फीसदी का इजाफा हो जाए तो उसे लेकर संदेह होना लाजिमी है। तीन साल पहले तक गौतम अडानी के पास 20 अरब अमेरिकी डॉलर की सम्पत्ति थी। फिर ऐसा क्या हुआ कि तीन साल में ही उनकी सम्पत्ति 120 अरब डॉलर तक जा पहुंची और वह दुनिया के दूसरे नंबर के अमीर बन गए? यह दीगर बात है कि जल्दी ही वह दूसरे से तीसरे स्थान पर खिसक गए। सवाल है, 1 खरब अमेरिकी डॉलर की श्रीवृद्धि, वह भी तीन साल में, ऐसा कैसे?
हिन्डनबर्ग रिसर्च ने जब इसकी पड़ताल की तो पाया कि यहां धुआं ही नहीं, आग भी है और उसने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि किस तरह दुनिया भर में तीसरे नंबर का सबसे अमीर व्यक्ति कॉर्पोरेट जगत का सबसे बड़ा घोटालेबाज निकला। अडानी की मानें तो हिन्डनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट भारत के खिलाफ विदेशी हमला है। जबकि हिन्डनबर्ग रिसर्च के अनुसार, धोखाधड़ी तो धोखाधड़ी है, चाहे उसमें दुनिया का सबसे अमीर आदमी ही क्यों न लिप्त हो। अडानी के आरोपों को ठुकराते हुए हिन्डनबर्ग रिसर्च ने भारतीय लोकतंत्र की जीवन्तता में फिर से विश्वास जताया है और इसे उभरती हुई महाशक्ति बताया है, जिसका भविष्य सुनहरा है। हालांकि उसका यह भी मानना है कि अडानी समूह भारत के भविष्य को पीछे ढकेल रहा है और देश को व्यवस्थित तरीके से लूटने के साथ ही वह खुद को देशभक्त दिखाने की कोशिश कर रहा है।
हम जैसो के लिए इस गोरखधंधे को समझना आसान नहीं है। हम ठहरे खेती-किसानी, मेहनत-मजदूरी, किराना-कारोबारी वाली आम जनता। हमें तो ठीक से यह तक नहीं पता कि एक खरब में कितने शून्य लगते हैं। पर यह मामला इतना दिलचस्प है कि इसे समझने-जानने का मन होता है। तो उसकी बातों को खेत-खलिहान की भाषा में समझने की कोशिश करते हैं। समझ लीजिए कि मेरे पास दो बीघा पुश्तैनी जमीन है, जिसकी कीमत मात्र 90 हजार रुपये है और मैं चाहता हूं उसपर कम से कम एक करोड़ का ऋण लेना। अब कौन सा ऐसा बैंक है जो मुझे 90 हजार की जमीन पर 1 करोड़ का ऋण देगा। तो मेरे पास पहली चुनौती है 90 हजार की जमीन को कम से कम 1.25 करोड़ की दिखाने की। सो मैं अपने भाई से कहता हूं कि तुम मुझसे इस जमीन में से एक कट्ठा 5 लाख में लिखवा लो। बस कागज पर लिखवाना ही तो है, बाकी पैसा तो मेरा-तुम्हारा ही है।
और भाई 5 लाख रुपये में मुझसे एक कट्ठा जमीन लिखवा लेता है। अब मेरे पास 19 कट्ठा जमीन बाकी है और उसकी कीमत बन चुकी है 1.95 करोड़ रुपए। पर बैंक है कि मानता नहीं। वह तो पूछेगा ही पास में मुरारि सिंह की जमीन कीमत अगर 45 हजार रुपए बीघा है तो आपकी जमीन में सोना निकल गया है क्या कि उसकी कीमत 7 लाख रुपये कट्ठा हो गई। इस दूसरी चुनौती से निबटने के लिए मैं विधायक जी का सहारा लेता हूं। जब वोट में उनकी इतनी मदद की थी तो क्या वह इतना भी न करेंगे। विधायक जी के कहने से सीओ मेरी जमीन की बढ़ी हुई कीमत पर अपनी मुहर लगा देता है और जो रही-सही कसर है, वह भी मैं मंत्री जी से कहवा कर पूरी करा देता हूं। अब बैंक की क्या मजाल कि मंत्री जी की बात न माने। तो इस तरह मुझे मेरी कौड़ियों की जमीन पर करोड़ रुपये का ऋण मिल जाता है।
पर मेरे पैसों की भूख यहीं खत्म नहीं होती। इस एक करोड़ को एक अरब में बनाने की तमन्ना जाग गई। सो मैं कोई गैर-मजुरवा जमीन देखता हूं जो मुझे औने-पौने दाम पर मिल सके। ऐसी एक जमीन है ना। पास में शमशान भूमि है और दो तरफ से गंदा नाला बहता है। गाँव के लोग शौचालय में न जाकर शौच के लिए वहीं जाते हैं। पर जमीन है बहुत बड़ी, कम से कम 20 बीघे की और अगर नाला भरवा कर उसे भी मिला दिया जाए तब तो 30 बीघा। पंचायत समीति से मिल-मिलाकर मैं इस जमीन को अपने नाम लिखवा लेता हूं। बैंक का ऋण और किस काम आएगा। और फिर पहुंच जाता हूं मुख्यमंत्री जी के पास। अब तक उनका साथ दिया था तो क्या अब वह मेरा साथ न देंगे?
मुख्यमंत्री जी ने तो मेरा मन ही खुश कर दिया। जो सोचा भी न था, वह भी दे दिया। पहले तो उन्होंने शमशान भूमि को वहां से हटा देने का आदेश दिया और फिर एक तरफ के नाले को भरवा कर वहां हाईवे बनाने की योजना भी बना डाली। जिस जमीन पर मैंने कुल 50 लाख खर्च किया था, वह अब कम से कम 5 करोड़ की तो हो ही गई। इस चक्कर में जो कुछ और लेना-देना पड़ा, उसके बावजूद यह सौदा सोलहों आने खरा रहा। लोगों को वहां शौच करने से रोकने में पुलिस ने भरपूर साथ दिया और मैंने भी टिमटाम पर थोड़ा-मोड़ा खर्च करके जमीन को समतल बना दिया और शमशान भूमि को भी उसी से जोड़कर चारदीवारी भी खड़ी कर ली। इतना करते ही 5 करोड़ की जमीन 60 करोड़ की हो गई जिसमें शमशान भूमि भी शामिल थी। इस बीच विकास की रफ्तार को गति देते हुए मुख्यमंत्री जी ने हाईवे बनवा ही दिया और रातो-रात उस भूमि पर 100 करोड़ की बोली लगने लगी। सौ करोड़ यानी 1 अरब की बोली। अब सोचिए जरा, इसी पद्धति से मैंने 1 अरब को 1 खरब में बदल डाला।
है न यह दिलचस्प कहानी। हमारे-आपके लिए जो किस्सा-कहानी है, अडानी समूह ने उसी को हकीकत में बदल डाला है। इससे क्या कि उनकी करोड़ो की सम्पत्ति पर बीमा कंपनी ने उन्हें अरबों का ऋण दे रखा है। इससे क्या कि उनकी वास्तविक औकात उतना बड़ा ऋण चुकाने की है ही नहीं, जितना उन्हें दे दिया गया है। इससे क्या कि जिस दिन भांडा फूटा नहीं कि सारा का सारा आटा जमीन पर बिखरा पड़ा होगा। पर फिलहाल तो सईयां भये कोतवाल तो डर काहे का।
यही है हिन्डनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट का लब्बो-लुबाब। अब आप कहेंगे कि कहां तो बात हो रही है हिन्डनबर्ग रिसर्च के रिपोर्ट की और मैं कहां बात करने लग पड़ा खेत-खलिहान की खरीद-बिक्री की। दोनो का क्या मिलान। दृष्टांत या उदाहरण मेरे हैं, पर बात तो हिन्डनबर्ग रिसर्च के रिपोर्ट की ही है। समझनेवाले समझ गए, जो ना समझे वो अनाड़ी है।